डॉ. राकेश शुक्ला,
नियोनैटोलॉजिस्ट व पीडियाट्रिशियन,
बॉम्बे हॉस्पिटल
नन्हा सा एक शिशु केवल माता-पिता की ही नहीं, पूरे परिवार की जिंदगी मे खुशियां लाता है। एक बच्चे के आने से घर की रौनक बढ़ जाती है। लेकिन कई बार कुछ विशेष स्थितियों या कारणों से बच्चा धरती पर आने से पहले ही वापस अपने घर यानी आसमान में लौट जाता है। यह एक बेहद दुखद स्थिति होती है क्योंकि उस नन्ही अनजान जिन्दगी से प्रेम का नाता जुड़ जाता है। खासकर मां-पिता का। अक्सर इस स्थिति के चलते दम्पत्ति इस ट्रॉमा से लम्बे समय तक उबर नहीं पाते, तो कुछ डिप्रेशन में भी चले जाते हैं। जैसा कि प्रकृति का नियम है। समय दुख को हील करने का काम करता है और प्रकृति आपको फिर से मुस्कुराने का मौका देती है। जैसे गहरे काले बादलों के बरसने के बाद कई बार खूबसूरत इंद्रधनुष आसमान को रंगों से भर देता है। ठीक उसी तरह एक बार प्रेग्नेंसी के सफल परिणाम न मिल पाने पर जब फिर से आशा के बीज कोख में पनपते हैं तो आने वाली संतान 'रेनबो बेबी' कहलाती है।
रेनबो बेबीज को सनशाइन बेबीज, एंजल बेबीज आदि नामों से भी पुकारा जाता है। ये वे बच्चे हैं जो ऐसी स्थिति में जन्म लेते हैं जब उनसे पहले या उनके बाद (एक से अधिक बच्चों के मामले में) जन्म लेने वाला बच्चा जीवित नहीं रह पाता। ऐसे में ये बच्चे और भी खास हो जाते हैं।
क्यों हैं स्पेशल रेनबो बेबी?
जाहिर है कि माता-पिता बनने की राह देख रहे दम्पत्ति के लिए इस सपने का अचानक टूट जाना एक बड़ा धक्का होता है। ऐसे में रेनबो बेबीज उन्हें भावनात्मक रूप से फिर सकारात्मकता की ओर ले जाते हैं। चूंकि रेनबो बेबी के ठीक पहले माता-पिता होने वाली संतान को किसी कारणवश खो चुके होते हैं इसलिए उस दुख और तकलीफ से हील होने में भी रेनबो बेबी मदद करते हैं।
रेनबो बेबीज के आगमन के पहले बच्चे को खो देने के पीछे आमतौर पर जो स्थितियां होती हैं उनमें शामिल हैं-
-मिसकैरेज, जो गर्भावस्था के पहले 20-24 हफ्तों के दौरान हुआ हो
-24 हफ्तों की गर्भावस्था के बाद मृत जन्मा बच्चा
-एक्टॉपिक प्रेग्नेंसी जिसमें फर्टिलाइज हुआ अंडा यूट्रस के बाहर इम्प्लांट हो जाता है
-किसी विशेष परिस्थिति के चलते हुई नवजात की मृत्यु
-अबॉर्शन या गर्भपात जो बच्चे या माँ की विशेष शारीरिक- मानसिक स्थिति को देखते हुए करना पड़े
इन बातों का रखें ध्यान
-रेनबो बेबी या सनशाइन बेबी के पहले या बाद के बच्चे को खो चुके दम्पत्ति एंग्जायटी, पोस्टपार्टम डिप्रेशन जैसी स्थितियों से घिर सकते हैं। ऐसे में उनके मन में दूसरी प्रेग्नेंसी को लेकर भी कई शंकाएं सिर उठाने लगती हैं। जरूरी यह है कि इसके लिए थोड़ा वक्त लिया जाए। जब तक माँ शारीरिक और मानसिक दोनों स्तरों पर पूरी तरह स्वस्थ महसूस न करे, परिवार को आगे बढ़ाने के बारे में न सोचें।
-रेनबो प्रेगनेंसी हमेशा भावनात्मक और शारीरिक दोनों स्तरों पर कई सारी उथल-पुथल से भरपूर होती है। आने वाले बच्चे को लेकर एक्साइटमेंट भी होती है। इसलिए जरूरी है कि इस दौरान पति/पार्टनर और परिवार गर्भवती महिला को पूरा सपोर्ट करे।
-साइकोलॉजिकल हेल्प या काउंसिलिंग को लेकर हमेशा तैयार रहें। इससे आपको आने वाले समय में बच्चे को पूरी सकारात्मक सोच के साथ बड़ा करें।
-अपने गायनिक और पीडियाट्रिशियन यानी स्त्री रोग और बच्चों के डॉक्टर के सम्पर्क में पूरे समय रहें। पीडियाट्रिशियन पूरे समय बच्चे की मॉनिटरिंग करते हैं। उसकी ग्रोथ पर निगाह रखते हैं।
-डॉक्टर आपको गर्भस्थ शिशु की कुछ बातों पर ध्यान रखने के लिए भी कह सकते हैं। जैसे शिशु की किक मारने की स्थिति को गिनना। विशेषज्ञों के अनुसार तीसरे ट्राइमेस्टर में बच्चे की पेट के अंदर किक मारने की स्थिति बहुत कुछ चीजों को स्पष्ट करती है। गर्भवस्था के करीब 28 हफ्तों के दौरान बच्चे ने कितनी बार किक मारी इसकी गिनती बच्चे के विकास को भी स्पष्ट करती है।
-किसी भी क्रिएटिव एक्टिविटी में समय बिताएं। खासकर जैसे बागवानी, म्यूजिक आदि से जुड़ें। ये एक्टिविटी जरूरी है कि दम्पत्ति साथ मे करें।
-रेनबो बेबीज को जन्म के बाद कुछ समय अस्पताल में रखने की जरूरत हो सकती है। क्योंकि उनको अतिरिक्त देखभाल की जरूरत हो सकती है। इसे लेकर घबराएं नहीं। यह एक रूटीन मॉनिटरिंग हो सकती है।
-रेनबो बेबीज आपके जीवन में खुशियों के आने की संभावना होते हैं। इसलिए उनको लेकर आशा बनाए रखें। गर्भवती महिला को भरपूर पोषण और सकारात्मक माहौल दें।
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नोट: यह लेख स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. राकेश शुक्ला, नियोनैटोलॉजिस्ट व पीडियाट्रिशियन, बॉम्बे हॉस्पिटल के सुझाव के आधार पर तैयार किया गया है।
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